हेडफोन या इयरफोन इस्‍तेमाल करते हैं तो ये आलेख जरूर पढ़ें

हेडफोन या इयरफोन इस्‍तेमाल करते हैं तो ये आलेख जरूर पढ़ें

सेहतराग टीम

युवाओं में हेडफोन और इयरफोन का इस्‍तेमाल आम हो गया है। बिना दूसरों को डिस्‍टर्ब किए मनपसंद गाना सुनना, फ‍िल्‍म देखना या ऑनलाइन कोई भी कार्यक्रम देखना आज की पीढ़ी का पसंदीदा काम है। मगर इसके साथ ही देश में कानों की समस्‍या के मामले भी बढ़ रहे हैं। क्‍या ऐसा हेडफोन या इयरफोन का इस्‍तेमाल करने के कारण हो रहा है? आइये इस बारे में ज्‍यादा जानते हैं।

दरअसल प्रकृति ने हमारे कान इस तरह डिजाइन किए हैं कि वो एक सीमा तक ऊंची आवाज को ही सुरक्षित रूप से सुन सकते हैं। आवाज की तीव्रता को डेसीबल में मापा जाता है। हमारे कानों के लिए कितने डेसीबल तक की आवाज सुरक्षित होती है इसे लेकर विशेषज्ञों में विवाद है। अमेरिका में विशेषज्ञों का एक खेमा 85 डेसीबल तक के शोरगुल को इंसानी कानों के लिए सुरक्षित मानता है मगर दूसरा खेमा इससे कहीं कम 70 डेसीबल को ही सुरक्षित सीमा मानता है। सामान्‍य रूप से किसी रेस्‍टोरेंट में जो शोरगुल हो रहा होता है वो 50 डेसीबल तक होता है, पुराने टेलीफोन की घंटी 70 डेसीबल तक आवाज करती है। बस या ट्रक के अंदर की आवाज 90 डेसीबल तक की होती है। तेज आवाज में बजने वाला संगीत 110 डेसीबल आवाज उत्‍पन्‍न करता है। इस पैमाने से हम समझ सकते हैं कि दरअसल हमारे कानों के लिए आवाज की कितनी तीव्रता सही हो सकती है।

अब हम अपने आलेख के मूल विषय पर लौटते हैं। जब हम कान में इयरफोन या हेडफोन लगाकर कोई संगीत या कार्यक्रम की आवाज सुन रहे होते हैं तो ये बात बेहद महत्‍वपूर्ण होती है कि उस समय आवाज की तीव्रता क्‍या है। भले ही दूसरे लोगों को कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा हो मगर हमारे कान लगातार एक खास डेसीबल तक आवाज सुन रहे होते हैं। ऐसे में उस आवाज का 70 डेसीबल से कम होना जरूरी है क्‍योंकि इससे ज्‍यादा तीव्रता वाली आवाज एक घंटे से ज्‍यादा सुनने से कानों में बहरेपन की समस्‍या हो सकती है। खासकर बच्‍चों में ये परेशानी जल्‍दी हो सकती है।

इस बारे में एक और बात जाननी जरूरी है कि संगीत अपने आप में एक चिकित्सा है जो हमारे तनाव को दूर कर हममें सकारात्मक ऊर्जा भरती है। कभी में मूड खराब होने पर संगीत सुनें तो आपको अच्‍छा महसूस होता है। दूसरों को बिना डिस्‍टर्ब किए इयरफोन पर संगीत सुनने में भी कोई बुराई नहीं है मगर आवाज को धीमा रखें और तब संगीत का आनंद लें। इसके साथ ही समय का भी ध्‍यान रखें कि एक बार में घंटे डेढ़ घंटे से अधिक समय तक इयरफोन या हेडफोन इस्‍तेमाल न करें। अन्‍यथा मन भले ही सुकून में हो मगर कानों को शायद दूसरी कोई परेशानी घेर ले।

आवाज कम रखें

आपको हेडफोन या इयर फोन इस्तेमाल करते समय म्यूजिक साउंड का जरूर ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि एक सीमा से अधिक लाउड आवाज में लगातार म्यूजिक सुनने पर ना केवल कानों की सेहत को नुकसान पहुंचता है बल्कि दिमाग पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। म्यूजिक साउंड से जुड़ी एक स्टडी के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति एक दिन में एक घंटे से अधिक लाउड साउंड यानी कि कानों की श्रवण क्षमता के हिसाब से 80 डेसिबल्स या उससे अधिक आवाज पर हेडफोन और इयर फोन पर संगीत सुनता है तो उसके बहरे होने के चांसेज कई गुना बढ़ जाते हैं।

ये चीज है जिम्मेदार

कई लोगों को इयर फोन और हेडफोन में अंतर को लेकर कंफ्यूजन रहता है। दरअसल, हेडफोन का इस्तेमाल करते समय हम कानों पर इसे बाहर से यूज करते हैं और इयर फोन को कानों के अंदर डालकर यूज करते हैं। लेकिन हमारी सेहत के लिए हेडफोन या इयर फोन का यूज हानिकारक नहीं है बल्कि इनके द्वारा तेज आवाज में लगातार म्यूजिक सुनना हमारे स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव डालता है।

होने लगती हैं कई समस्या

इनके अधिक प्रयोग से ना केवल हमारी सुनने की क्षमता प्रभावित होती है बल्कि कई बार बहरेपन की स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है। साथ ही कानों के सुन्न होने की समस्या, कानों में दर्द रहना, सिर में भारीपन रहना, नींद आने में दिक्कत होना, दिमागी रूप से थकान महसूस करना, कानों में इंफेक्शन होना या कानों में हर समय शोर सुनाई देते रहने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए हेडफोन और इयरफोन का उपयोग करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखें कि आप लाउड साउंड पर इनका इस्तेमाल ना करें।

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